गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

कब तक विदेशी होने का ताना सहेंगी सोनीया


कब तक विदेशी होने का ताना सहेंगी सोनिया

2004 में जब कांग्रेस ने लोक सभा चुनाव जीता तो भाजपा ने मुद्दा उठाया कि सोनिया विदेशी हैं और उनको प्रधानमन्त्रि के रूप में हम स्वीकार नहीं कर सकते आखिरकार भाजपा का विरोध रंग लाया और सोनिया गाँधी ने देश के प्रधानमन्त्रि का पद ठुकरा दिया । जी हां वही पद जिसके लालच में आडवाणी ने 1992 में देश को दंगे कराये लेकिन इसके बाद भी वह प्रधानमन्त्रि नहीं बन पाये ।

सवाल यह उठता है कि जिस औरत ने अपना सबकुछ भारत पर कुरबान कर दिया उसके लिये विदेशी होने का ताना आखिर कब तक ? क्या भाजपा का इस हद तक नैतिक पतन हो गया है कि वह बहू को भी शक की नज़रों से देख रही है ? पिछले दिनों उमा भारती ने भी सोनिया गाँधी पर विदेशी होने कि टिप्पणी की । कोई उमा जी से पूछे कि सोनिया ने तो भारत में आकर यहां की परंपरा को अपना लिया कभी किसी संप्रदाय के खिलाफ एक शब्द तक नहीं कहा मगर उमा और उनकी पार्टी कभी पीछे नहीं रही मुसलमानों को कोसने कोटने जलाने में । कभी गुजरात कराया कभी भागलपुर कभी मेरठ को सुलंगाया कभी मुरादाबाद को और ना जाने देश में कहा कहां दंगे कराये राम के नाम पर मन्दिर के नाम पर देश की शान्ती को भंग कराया उमा ने और उनकि भाजपा ने R S S ने । देश की फिज़ा में सांप्रदायिकता का ज़हर घोल कर खुद को सच्चा भारतीय कहने में इन लोगो को तनिक भी शर्म नहीं आती। और जिस औरत ने अपना सब कुछ अपना पती अपना देश सब कुछ भारत के लिये क़ुरबान कर दिया , कभी देश में किसी भी संप्रदाय को निशाना नहीं बनाया उसे ये लोग विदेशी कहते हैं ।

ये शायद भूल गये हैं की भारत कि जिस परंपरा की ये दूहाई देते हैं उसी की एक बहुत बड़ी विशेषता है कि बेटी का असली घर उसकी ससुराल होती है अब फैसला आपको करना है कि भारत सोनिया के लिये ससुराल है यै मायका ?

मुझे मुनव्वर राना की एक नज़्म यहां याद आ रही है उसे यहां पर लिखे देता हूँ जिसमें ना सोनिया बोलती हैं ना ही राजीव गाँधी उसे पढ़ कर क्या पता इनका कुछ ज़मीर जागे लगता तो नही लेकिन फिर भी कोशिश कर के देखते हैं । एक और बात अपबे पाठकों से शेयर करना चाहता वह यह कि ना मैं काग्रेस का कोई कार्यकर्ता हूँ और ना ही वोटर

प्रस्तुति वसीम अकरम
एक बेनाम सी चाहत के लिए आयी थी
आप लोंगों से मोहब्बत के लिए आयी थी
मैं बड़े बूढों की खिदमत के लिए आयी थी
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी
शिज्रा ए रंग व गुल व बू नहीं देखा जाता
शक की नज़रों से बहु को नहीं देखा जाता
रुखसती होते ही माँ बाप का घर भूल गयी
भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी
घर को जाती हुयी हर रहगुज़र भूल गयी
में वह चिड़िया हूँ जो अपना शजर भूल गयी
में तो जिस देश में आयी थी वही याद रहा
होके बेवा भी मुझे सिर्फ पति याद रहा
नफरतों ने मेरे चेहरे से उजाला छीना
जो मेरे पास था वह चाहने वाला छीना
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना
मुझ से गिरजा भी लिया मेरा शिवाला छीना
अब यह तकदीर तो बदली भी नहीं जा सकती
में वो बेवा हूँ जो इटली भh नहीं जा सकती
अपने घर में यह बहुत देर कहाँ रहती है
लेके तकदीर जहाँ जाये वहां रहती है
घर वही होता है औरत का जहाँ रहती है
मेरे दरवाज़े पे लिख दो यहाँ माँ रहती है
सब मेरे बाग़ के बुलबुल की तरह लगते है
सारे बच्चे मुझे " राहुल " की तरह लगते हैं
हर दुखे दिल से मोहब्बत है बहु का ज़िम्मा
घर की इज्ज़त की हिफाज़त है बहु का ज़िम्मा
घर के सब लोंगों की खिदमत है बहु का ज़िम्मा
नौजवानी की इबादत है बहु का ज़िम्मा
आयी बाहर से मगर सब की चहीती बनकर
वह बहु है जो रहे साथ में बेटी बनकर
ऐ मोहब्बत तुझे आज तक कोई समझा ही नहीं
तेरा लिखा हुआ शायद कोई पढ़ता ही नहीं
घर को छोड़ा तो पलट कर कभी देखा ही नहीं
वापसी के लिए मेंने कभी सोचा ही नहीं
घर की देहलीज़ पे कश्ती को जला आयी हूँ
जो टिकट था उसे दरिया में बहा आयी हूँ
मैंने आँखों को कहीं पर भी छलकने न दिया
चादर -ए - ग़म ज़रासा भी मसकने न दिया
अपने बच्चो को भी हालत से थकने न दिया
सरसे आँचल को किसी पल भी सरकने न दिया
मुद्दतों हो गई खुल कर कभी रोई नहीं
एक ज़माना हुआ मैं चैन से सोयी नहीं
अपनी इज्ज़त को पराया भी कहीं कहते हैं
चांदनी को कभी साया भी कहीं कहते हैं
क्या मोहब्बत को बकाया भी कहीं कहते हैं
फल को पेड़ो का किराया भी कहीं कहते हैं
में दुल्हन बनके भी आयी इसी दरवाज़े से
मेरी अर्थी भी उठेगी इसी दरवाज़े से
आग नफरत की भला मुझको जलाने से रही
यह सियासत मुझे इस घर से भगाने से रही
छोड़ कर सबको मुसीबत में तो जाने से रही
उठके यह मिटटी तो इस मिटटी से जाने से रही
में अगर जाना भी चाहूं तो न जाने देगी
अब् यह मिटटी मेरी मिटटी को न जाने देगी
मेरी आँखों की शराफत में यहाँ की मिटटी
मेरे जीवन की मोहब्बत में यहाँ की मिटटी
मेरी क़ुरबानी की ताक़त में यहाँ की मिटटी
टूटी फूटी सी इस औरत में यहाँ की मिटटी
कोख् में रख के यह मिटटी इसे धनवान किया
मेंने " प्रियंका " और "राहुल " को भी इंसान किया .
मेरे होंटों पे है भारत की जुबा की खुशबू
किसी देहात के कच्चे मका की खुशबू
अब् मेरे खून से आती है यहाँ की खुशबू
सूंघिए मुझको तो मिल जएगी माँ की खुशबू
पेड़ बोया है तो एक दिन यह मेवा देगा
मेरी अर्थी को चिता भी मेरा बेटा देगा
राम का देश है नानक का वतन है भारत
कृष्ण की धरती है गौतम का चमन है भारत
मेरे का शेर है मीरा का भजन है भारत
जिसको हर एक ने सजाया वह दुल्हन है भारत
खुद को एक दिन इसी मिटटी में बोना है मुझे
मर के भी चैन से भारत में ही सोना है मुझे
फूल मुझको मेरे चमन की तरह लगते हैं
पेड़ जितने भी है चन्दन की तरह लगते हैं
सारे चेहरे मुझे दर्पण की तरह लगते हैं
भारती सब मुझे लक्ष्मण की तरह लगते हैं
जानती हूँ कि में सीता तो नहीं हो सकती
लेकिन इतिहास के पन्नो में नहीं खो सकती
आप लोंगों का भरोसा है ज़मानत मेरी
धुंधला धुंधला सा वह चेहरा है ज़मानत मेरी
आप के घर की यह चिड़िया है ज़मानत मेरी
आप के भाई का बेटा है ज़मानत मेरी
है अगर दिल में किसी के कोई शक निकलेगा
जिस्म से खून नहीं सिर्फ नमक निकलेगा ............

(
मुनव्वर राणा )

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